कुछ ग्रहों की दशाएं ऐसी होती हैं कि चाहें आपकी कुण्डली कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, उन दशाओं के दौर में निश्चित तौर पर नुकसान ही होता है। ऐसा ही ग्रह है राहु। चाहे राहु की महादशा हो, अंतरदशा हो, प्रत्यंतरदशा हो या सूक्ष्म दशा हो, जब भी राहु का रोल आएगा तो वह निश्चित तौर पर नुकसान करेगा। डेली ट्रेडिंग करने वालों को तो राहु के गोचर और राहु की दशा एवं दिन में होने वाले राहुकाल का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
क्या है राहु : ज्योतिष में राहु को प्लेनेट ऑफ अन्सर्टेनिटी यानी अनिश्चितता का ग्रह कहा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में से जो अमृत निकला, उसे मोहिनी रूप में आए विष्णु उड़ा ले गए। बाद में देवताओं को कतार में बैठा दिया गया और स्वयं भगवान विष्णु उन्हें एक एक कर अमृत पान कराने लगे। इसी दौर में एक राक्षस भी भेष बदलकर कतार में आकर बैठ गया। सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया। जब मोहिनी रूपी विष्णु छद्मवेषधारी राक्षस को अमृत चखा ही रहे थे कि सूर्य और चंद्रमा ने तुरंत चेताया और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से राक्षस का गला काट दिया। तब तक अमृत अपना काम कर चुका था। देह के दो भाग हुए। सिर भाग को राहु और धड़ भाग को केतु कहा गया।
जब भी जन्मपत्रिका में राहु का रोल आता है तब वहां राहु चूंकि सिर भाग है, अंत: जातक के सिर भाग पर ही हमला करता है। इसका परिणाम होता है कि बुध जो कि बुद्धि का ग्रह है, पीडि़त हो जाता है। गुरु जो जीवकारक है, पीडि़त हो जाता है और अपनी चुगली के कारण नाराज राहु एवं केतु चंद्रमा और सूर्य को भी ग्रस लेते हैं।
यह कैसे नुकसान पहुंचाता है: मेरा निजी अनुभव यह रहा है कि राहु की दशा, अंतरदशा, प्रत्यंतरदशा और सूक्ष्म में जब राहु जातक को नुकसान पहुंचाने वाला होता है तो उसके समक्ष ऐसी प्रॉमिसिंग संभावनाएं लेकर आता है, जिससे जातक को लगता है कि अमुक स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाकर वह बहुत तेजी से तरक्की कर पाएगा। लेकिन जैसे ही निवेश होता है, उसके साथ ही नुकसान होना शुरू हो जाता है। नुकसान का चक्रीय क्रम इतना तेज चलता है कि जातक चाहकर भी उस दुष्चक्र से बाहर नहीं आ पाता और डैमेज होता चला जाता है।
इसके नुकसान के प्रमुख तरीके हैं : यह कैपिटल इन्वेस्टमेंट को डुबा देता है। यह अल्पकालिक या कहें राहु के दौर तक चलने वाले निवेशों को ध्वस्त करता है। यह व्यापार में चल रहे मनी रोटेशन को जाम कर देता है। साझे में चल रहे व्यापार में यह आपसी अंडस्टैंडिंग को बिगाड़ता है। कई बार लिटिगेशन और सत्ता से भी अचानक बड़ा नुकसान दिलाता है।
क्या राहु हमेशा नुकसान ही दिलाता है: अगर संभावना की बात करें तो 100 में से 90 या 95 प्रतिशत मामलों में राहु नुकसान ही करता है। शेष पांच से दस प्रतिशत मामलों में अगर लाभ भी होता है तो वह अल्पकालिक लाभ होता है, अंतत: वह लाभ भी जाता रहता है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो राहु की दशा में अर्जित किए गए धन, संपत्ति अथवा लाभ को आगे की दशाओं तक ले जा पाते हैं।
राहु की दशा कितने समय की होती है: राहु की महादशा अठारह साल की होती है। किसी अन्य दशा में राहु की अंतरदशा छह महीने से तीन साल तक की हो सकती है। मसलन सूर्य की महादशा में राहु की अंतरदशा छोटी होगी और शुक्र की महादशा में राहु की अंतरदशा बड़ी होगी। राहु की प्रत्यंतर दशा कुछ महीने की ही होती है और सूक्ष्म दशा कुछ दिनों तक चलती है। सबसे लंबी अवधि महादशा की होती है, उससे कम अंतरदशा की, उससे कम प्रत्यंतरदशा की और सबसे कम सूक्ष्म दशा की अवधि होती है। जितने समय तक राहु का दौर रहेगा, तब तक जातक की कुण्डली पर राहु का प्रभाव रहेगा।
इससे बचाव के लिए क्या कर सकते हैं: सामान्य तौर पर राहु की दशा के दौरान कठोर और ठोस निर्णय लेने से बचा जाए तो सर्वश्रेष्ठ है। विपरीतर सौदों और डील को राहु का दौर समाप्त होने तक लटकाए रखना श्रेष्ठ है, राहु का दौर बीतने के बाद स्थितियां फिर से नॉर्मल होने लगती हैं। दैवीय सहायता में भैरवजी की कृपा प्राप्त कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
प्रत्येक जातक के लिए राहु के मायने अलग अलग होते हैं और अगर ज्योतिषीय उपचारों की बात की जाए तो प्रत्येक जन्मपत्रिका के लिए राहु के विशिष्ट उपचार होते हैं। इसके लिए किसी सक्षम ज्योतिषी से सलाह लेकर गंभीरतापूर्वक उपचार करें तो नुकसान से बहुत अधिक बचा जा सकता है, प्रगति की बहुत अधिक उम्मीद नहीं कर सकते।
सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी +91-9413156400